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ते म॑ आहु॒र्य आ॑य॒युरुप॒ द्युभि॒र्विभि॒र्मदे॑। नरो॒ मर्या॑ अरे॒पस॑ इ॒मान्पश्य॒न्निति॑ ष्टुहि ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

te ma āhur ya āyayur upa dyubhir vibhir made | naro maryā arepasa imān paśyann iti ṣṭuhi ||

पद पाठ

ते। मे॒। आ॒हुः॒। ये। आ॒ऽय॒युः। उप॑। द्युऽभिः॑। विऽभिः॑। मदे॑। नरः॑। मर्याः॑। अ॒रे॒पसः॑। इ॒मान्। पश्य॑न्। इति॑। स्तु॒हि॒ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:53» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:3» वर्ग:11» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:4» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मनुष्य क्या करें, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ये) जो (अरेपसः) दोषों के लेप से रहित (मर्य्याः) मरण धर्म्मवाले (नरः) नायक मनुष्य (द्युभिः) कामना करते हुए (विभिः) पक्षियों के सदृश (मदे) आनन्द के लिये (मे) मेरे सत्य को (आहुः) कहें और (आययुः) जानें वा प्राप्त होवें (ते) वे (इमान्) इन मनोरथों को (पश्यन्) देखते हुए के समान कहें (इति) इस प्रकार आप मेरी (उप, स्तुहि) समीप में स्तुति करिये ॥३॥
भावार्थभाषाः - जो विद्वान् जन दिन-रात्रि परिश्रम से विद्या को प्राप्त होकर अन्यों को उपदेश देवें, उनको यथार्थवक्ता जानना चाहिये ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मनुष्याः किं कुर्युरित्याह ॥

अन्वय:

येऽरेपसो मर्य्या नरो द्युभिर्विभिर्मदे मे सत्यमाहुराययुस्त इमाम् कामान् पश्यन्निवाऽऽहुरिति त्वं मामुप स्तुहि ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (ते) (मे) मम (आहुः) कथयेयुः (ये) (आययुः) जानीयुः प्राप्नुयुर्वा (उप) (द्युभिः) कामयमानैः (विभिः) पक्षिभिरिव (मदे) आनन्दाय (नरः) नेतारः (मर्य्याः) मरणधर्माणः (अरेपसः) दोषलेपरहिताः (इमान्) (पश्यन्) (इति) (स्तुहि) प्रशंस ॥३॥
भावार्थभाषाः - ये विद्वांसोऽहर्निशं परिश्रमेण विद्यां प्राप्याऽन्यानुपदिशेयुस्त आप्ता विज्ञेयाः ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे विद्वान अहर्निश परिश्रम करून विद्या प्राप्त करून इतरांना उपदेश देतात त्यांना आप्त (यथार्थवक्ता) समजावे. ॥ ३ ॥